BLA का खौफ! सूराब में नेशनल बैंक के बाहर पाकिस्तान सेना भागी – असीम मुनीर की बेइज्जती


सूराब की दोपहर: एक विद्रोह नहीं, एक संदेश था

सूराब की वह दोपहर, जो हर दिन की तरह सामान्य लग रही थी, अचानक इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। बलूचिस्तान के इस शांत से कस्बे में एक अप्रत्याशित हलचल ने सभी को चौंका दिया। नेशनल बैंक के बाहर जमा होती भीड़ पहले कुछ समझ नहीं पाई, लेकिन जल्द ही उन्हें पता चल गया कि ये कोई मामूली घटना नहीं थी – यह था BLA यानी बलूच लिबरेशन आर्मी का संगठित और साहसिक प्रदर्शन।


इन लड़ाकों के चेहरे पर न डर था, न घबराहट। वो आए थे एक मकसद के साथ – दुनिया को यह दिखाने कि बलूचिस्तान अब चुप नहीं रहेगा। और खास बात यह रही कि उन्होंने किसी गोली का सहारा नहीं लिया। न कोई धमाका, न कोई हिंसा, सिर्फ एक सुनियोजित उपस्थिति ने पाकिस्तानी हुकूमत की नींव हिला दी। जबरदस्ती के शासन और फौजी बूटों की गूंज को चुनौती देने के लिए अब बलूचों को हथियार उठाने की जरूरत नहीं, उनका आत्मबल ही काफी है।

पाकिस्तानी सेना की स्थिति उस दिन बेहद शर्मनाक थी। सूराब की सुरक्षा में तैनात सैनिकों ने अपनी जिम्मेदारी को एक तरफ रख दिया और हथियारों के साथ भाग खड़े हुए। न कोई जवाबी रणनीति, न कोई प्रतिरोध – सिर्फ खामोश और डर से भरी हुई पीछे हटने की कार्रवाई। यह सब कुछ पाकिस्तान की सेना की तथाकथित ‘शक्ति’ के खिलाफ एक सीधा तमाचा था।

इस शर्मनाक परिदृश्य ने सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को कठघरे में खड़ा कर दिया। जिनके दावे हमेशा यही रहे हैं कि पाकिस्तानी फौज हर चुनौती से निपटने में सक्षम है, उनकी रणनीति और ज़मीन पर मौजूदगी पर अब सवाल उठना लाज़मी है। क्या यही वो सेना है जो आए दिन बलूचों को 'आतंकवादी' बताकर ऑपरेशन चलाती है? क्या यही वो ताक़तवर फौज है जो मीडिया में खुद को ‘देश की ढाल’ बताती है, लेकिन वास्तविक खतरे सामने आने पर अपनी पोस्ट छोड़ भाग जाती है?

BLA का यह प्रदर्शन सिर्फ एक क़दम नहीं था, यह बलूच जनता के बढ़ते आत्मविश्वास और हक़ की आवाज़ का प्रतीक बन चुका है। सूराब में जो हुआ, वह पूरे बलूचिस्तान के लिए एक प्रतीकात्मक चेतावनी थी – अब जबरदस्ती का राज खत्म हो रहा है, अब इंसाफ़ की मांग गूंज रही है।

सूराब की गलियों में अब खामोशी नहीं, एक नई उम्मीद की हलचल है। जो लोग अब तक दहशत और सेंसरशिप के साए में जीते थे, वो अब खुलकर बोल रहे हैं। एक ओर जहाँ पाकिस्तानी सेना की पकड़ ढीली होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर बलूचिस्तान की युवा पीढ़ी हिम्मत और संगठित सोच के साथ आगे बढ़ रही है।

यह घटना यह भी साबित करती है कि बलूच आंदोलन अब केवल विरोध तक सीमित नहीं रहा, यह अब एक वैचारिक क्रांति बन चुका है। एक ऐसी क्रांति जो बंदूक की नहीं, संकल्प की ताकत पर टिकी है। सूराब अब सिर्फ एक शहर नहीं, एक प्रतीक है – उस साहस का, जो दशकों की दबी हुई आवाज़ को बुलंद करने की हिम्मत रखता है।

बलूचिस्तान अब नई दिशा में बढ़ रहा है। सूराब की इस दोपहर ने न केवल पाकिस्तान की कमजोरी को उजागर किया, बल्कि दुनिया को यह भी दिखा दिया कि संघर्ष की असली ताक़त जनसामान्य की चेतना में होती है, न कि बंदूक की नोक पर थोपे गए सन्नाटे में।


 

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