यूक्रेन में तबाही का तांडव: मिसाइलों और ड्रोन से जल उठा हर शहर

 


रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा संघर्ष अब अपने सबसे भयावह और खतरनाक चरण में पहुंच चुका है। 2022 में शुरू हुई यह लड़ाई अब एक ऐसे मोड़ पर आ गई है, जहाँ मानवता, कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय कानून – सब कुछ ध्वस्त होता दिख रहा है। हाल ही में रूस द्वारा किया गया हमला किसी एक सीमित सैन्य ऑपरेशन की तरह नहीं, बल्कि एक सुनियोजित और समन्वित तबाही का तांडव था, जिसने यूक्रेन के लगभग हर बड़े शहर को झुलसा दिया।

मिसाइलें, ड्रोन और जलते शहर:

लवीव, खारकीव, कीव, ओडेसा, निप्रो – कोई भी शहर इस हमले से नहीं बच पाया। रूस ने आधुनिक मिसाइल सिस्टम और कामिकाज़े ड्रोन का इस्तेमाल करते हुए यूक्रेन के रक्षा प्रतिष्ठानों, ऊर्जा संयंत्रों, संचार केंद्रों, और नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाया। दर्जनों धमाकों की गूंज ने पूरे देश को हिला दिया।
सिर्फ सैन्य ठिकाने ही नहीं, अस्पताल, आवासीय अपार्टमेंट और रेलवे स्टेशन जैसे नागरिक स्थल भी इस हमले की चपेट में आ गए। सैकड़ों आम नागरिक घायल हुए, और कई की जान चली गई।



ज़ेलेंस्की का छिपना और NATO की खामोशी:

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की, जो अक्सर युद्ध क्षेत्र में दिखाई देते थे, इस बार अचानक गायब हो गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने खुद को एक अज्ञात बंकर में शिफ्ट कर लिया है। यह कदम जहां सुरक्षा की दृष्टि से समझा जा सकता है, वहीं यह यूक्रेनी जनता में चिंता और भय की भावना भी बढ़ा रहा है।

दूसरी ओर, NATO एक बार फिर खामोश और निष्क्रिय दिखाई दे रहा है। ना कोई सीधी सैन्य प्रतिक्रिया, ना ही कोई ठोस प्रतिबंध — सिर्फ़ "गंभीर चिंता" और "स्थिति पर नजर" जैसे बयानों से आगे कुछ नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या NATO वास्तव में एक रक्षक संगठन है या केवल एक राजनीतिक मंच?

रूस की चेतावनी: यह तो बस शुरुआत है

रूसी रक्षा मंत्रालय ने इस हमले के तुरंत बाद एक बयान जारी किया, जिसमें साफ शब्दों में कहा गया —
"हमने पहले ही चेतावनी दी थी कि यदि उकसाया गया, तो परिणाम भुगतने होंगे। यह पहली लहर है — और अभी बहुत कुछ बाकी है।"

यह बयान सिर्फ एक जवाब नहीं, बल्कि आगे आने वाले और भी बड़े हमलों की भविष्यवाणी है। यह स्पष्ट संकेत है कि रूस अब पीछे हटने को तैयार नहीं।

क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की दस्तक है?

यह प्रश्न अब सिर्फ एक आशंका नहीं, बल्कि एक गंभीर संभावना बनता जा रहा है। जब बड़े देश युद्ध में उतरते हैं, तो केवल सीमाएं नहीं टूटतीं — पूरी सभ्यता खतरे में पड़ जाती है।
इस संघर्ष में अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और चीन जैसे देशों की चुप्पी या धीमी प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि दुनिया एक बार फिर दो ध्रुवों में बंटती जा रही है — ठीक वैसे ही जैसे शीत युद्ध के दौर में था।

यूक्रेन की स्थिति: क्या वह टिक पाएगा?

यूक्रेन की सेना बहादुरी से लड़ रही है, लेकिन लगातार होते हमलों और सीमित संसाधनों ने उसकी कमर तोड़ दी है। अंतर्राष्ट्रीय सहायता समय पर नहीं पहुंच रही, और अंदरूनी हालात भी बिगड़ते जा रहे हैं।
सर्दी का मौसम नज़दीक है, बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित हो चुकी है, और लाखों नागरिक विस्थापित हैं। ऐसे में सवाल उठता है — क्या यूक्रेन ये लड़ाई जारी रख पाएगा?

मानवता पर हमला:

इस युद्ध में सिर्फ टैंक और मिसाइलें नहीं मर रही — उम्मीद, भरोसा और मानवता भी घायल हो रही है। बच्चों के स्कूल मलबे में तब्दील हो चुके हैं, माताएं अपने बच्चों को लेकर शरणार्थी शिविरों में रह रही हैं, और बुज़ुर्ग खुले आसमान के नीचे ठंड में काँपते दिखाई दे रहे हैं।

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