अमेरिका में हिंसा की आग: ट्रंप विरोधी दंगों में भड़की लॉस एंजिल्स, 'सर तन से जुदा' जैसे प्रदर्शन से थर्राया देश
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लॉस एंजिल्स में ट्रंप विरोधी दंगों की आग
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कटे हुए पुतले के सिर लेकर सड़कों पर निकले प्रदर्शनकारी
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आगजनी, लूटपाट और तोड़फोड़ ने शहर को बनाया युद्ध क्षेत्र
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डोनाल्ड ट्रंप पर "सीजफायर" नीति के बावजूद शांति बनाए रखने में विफलता के आरोप
अमेरिका की सड़कों पर उग्रता का विस्फोट
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया — 7 जून 2025 की रात को अमेरिका के इतिहास में एक और काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गई। लॉस एंजिल्स की सड़कों पर हजारों की संख्या में उतरे प्रदर्शनकारी, देखते ही देखते हिंसक भीड़ में तब्दील हो गए। दुकानों में तोड़फोड़, वाहनों को आग के हवाले करना, दुकानों की लूट और नारेबाजी — सबकुछ एक साथ शुरू हुआ।
लेकिन इस बार गुस्से का केंद्र सिर्फ नस्लभेद, पुलिस बर्बरता या सामाजिक असमानता नहीं थी — बल्कि सीधे अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।
'सर तन से जुदा'-शैली में ट्रंप विरोध
सबसे चौंकाने वाला और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने वाला दृश्य था, जब कुछ प्रदर्शनकारियों ने डोनाल्ड ट्रंप के पुतले का 'कटा हुआ सिर' हाथों में लेकर जुलूस निकाला। यह प्रतीकात्मक रूप से एक सीधा संदेश था — "हमारे राष्ट्रपति ने हमारी आवाज नहीं सुनी, अब हम प्रतीकों से उन्हें जवाब देंगे।"
‘सर तन से जुदा’ जैसे दृश्य, जो आमतौर पर कट्टर इस्लामी चरमपंथी प्रदर्शनों में देखे जाते हैं, अब अमेरिकी सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं, और वह भी लोकतंत्र के गढ़ माने जाने वाले देश में।
क्या है दंगों की असली वजह?
लॉस एंजिल्स में यह उग्र प्रदर्शन ट्रंप प्रशासन की हालिया 'सीजफायर नीति' और एक विवादास्पद भाषण के बाद भड़का, जिसमें ट्रंप ने कहा था:
“अमेरिका को शांत रहने की ज़रूरत है, लेकिन जो आवाज़ें हमारी नीति को नहीं समझतीं, उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।”
इस बयान को अल्पसंख्यक और वामपंथी समूहों ने लोकतंत्र की भावना के खिलाफ बताया। इसके तुरंत बाद सोशल मीडिया पर ट्रंप विरोधी कैंपेन उग्र हुआ, जिसने देखते ही देखते लॉस एंजिल्स, पोर्टलैंड, शिकागो और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शनों को हिंसक रूप दे दिया।
लूट, आग और अराजकता का आतंक
लॉस एंजिल्स में बीती रात दर्जनों दुकानों को लूटा गया।
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हाई-एंड स्टोर्स से लेकर छोटे व्यवसाय तक निशाने पर रहे।
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15 से अधिक वाहनों को जला दिया गया।
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दर्जनों नागरिकों और पुलिस कर्मियों को चोटें आईं।
शहर की मुख्य सड़कों पर पत्थरबाज़ी और मोलोटोव कॉकटेल जैसे हथियारों का खुला इस्तेमाल हुआ। पुलिस की स्पेशल यूनिट को बुलाना पड़ा, लेकिन दंगाईयों के जोश के सामने वह भी बेबस नजर आई।
ट्रंप के खिलाफ गुस्सा – सिर्फ पॉलिटिकल नहीं, व्यक्तिगत भी
प्रदर्शनकारियों के हाथों में जो बैनर थे, उन पर सिर्फ ‘RESIGN TRUMP’, ‘NOT OUR PRESIDENT’ नहीं लिखा था —
बल्कि लिखा था:
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“TRUMP = TERROR”
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“HEADLESS JUSTICE”
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“YOU SILENCED US, NOW FACE OUR SYMBOLS”
यह साफ दर्शाता है कि जनता का एक वर्ग अब डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ प्रतीकों के माध्यम से हिंसक विरोध के रास्ते पर उतर चुका है।
सीजफायर राष्ट्रपति' नहीं रोक सके दंगे
डोनाल्ड ट्रंप, जो खुद को ‘शांति का दूत’ और “Conflict Resolver” मानते रहे हैं — उन्होंने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई सीजफायर और मध्यस्थता प्रयासों में भाग लिया। लेकिन अब विरोधी दल और जनता का एक वर्ग उन पर सवाल उठा रहा है:
“दुनिया को शांत करने चले थे, लेकिन अपना देश नहीं संभाल पाए।”
इस सवाल ने ट्रंप की राष्ट्रपति छवि को गहरे संकट में डाल दिया है।
राजनीतिक हलचल: रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेट
डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस दंगे को लेकर ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा:
“ट्रंप ने अमेरिका को इतना बांट दिया है कि अब आम नागरिक सिर्फ सोशल मीडिया नहीं, सड़कों पर भी उबल रहे हैं। उन्होंने आग लगाई, अब वो उस पर पानी नहीं, ईंधन डाल रहे हैं।”
वहीं रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि यह सब एक प्रायोजित राजनीतिक ड्रामा है, जिसमें वामपंथी समूह देश को अस्थिर करना चाहते हैं।
ट्रंप ने क्या कहा?
घटना के करीब 10 घंटे बाद ट्रंप ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक छोटा संदेश दिया:
लेकिन यह संदेश लोगों के गुस्से को कम नहीं कर सका। ट्रंप का न बोलना, फिर देर से बोलना और तब भी भावनाओं से कटे-कटे ढंग से बयान देना — ये सब आलोचना के कारण बनते जा रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की नज़र में अमेरिका
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बीबीसी ने इस घटना को “American Democracy’s Meltdown” बताया।
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अल-जज़ीरा ने कहा: “ऐसे प्रतीक, जो इस्लामी आतंक से जुड़े होते थे, अब अमेरिकी धरती पर देखे जा रहे हैं।”
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NDTV और Zee News जैसे भारतीय मीडिया आउटलेट्स ने इसे "अमेरिका में लोकतंत्र की सबसे बुरी रात" कहा।
क्या अब वाइट हाउस भी सुरक्षित नहीं?
दंगों की आग इतनी बढ़ चुकी है कि वाशिंगटन डीसी में व्हाइट हाउस के बाहर प्रदर्शनकारियों ने कूच करने की चेतावनी दी है।
व्हाइट हाउस के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और नेशनल गार्ड्स को तैयार रहने को कहा गया है।
लॉस एंजिल्स में 'सर तन से जुदा' जैसे प्रतीकात्मक हिंसक प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि अब अमेरिका की जनता का गुस्सा केवल नारेबाज़ी तक सीमित नहीं है। वे अपने गुस्से को कट्टर प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त कर रहे हैं।
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क्या यह लोकतंत्र की चेतावनी है?
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या फिर एक और सिविल वार की शुरुआत?
इस समय ट्रंप का हर बयान, हर चुप्पी और हर एक्शन – अमेरिका के भविष्य की दिशा तय करेगा।