की निगरानी में आयोजित की गई थी। हालांकि बातचीत से कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका।
यूक्रेनी
राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने वार्ता के बाद कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि रूस
अब भी अपने आक्रामक रुख पर कायम है और ऐसे में उसके खिलाफ G7 स्तर पर सख्त आर्थिक और राजनीतिक
प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर अंतरराष्ट्रीय
समुदाय ने रूस के खिलाफ निर्णायक कदम नहीं उठाए, तो यह युद्ध और लंबा खिंच सकता है।
वार्ता का संक्षिप्त विवरण
शांति
वार्ता का आयोजन एक गोपनीय स्थान पर किया गया था, जहां रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधिमंडल मौजूद थे। बैठक
की शुरुआत अपेक्षाकृत सकारात्मक माहौल में हुई, लेकिन वार्ता के दौरान दोनों पक्षों के विचारों में
इतनी दूरी थी कि बैठक एक घंटे के भीतर ही समाप्त हो गई। यह संकेत देता है कि
वर्तमान समय में दोनों देशों के बीच कोई समझौता होने की संभावना बेहद कम है।
यूक्रेनी
पक्ष ने सबसे पहले युद्धविराम, सैनिकों की
वापसी, और कब्जे में लिए गए क्षेत्रों को
मुक्त करने की मांग रखी। वहीं रूस ने इन मांगों को खारिज करते हुए अपनी सुरक्षा
चिंताओं को प्राथमिकता देने की बात कही। इस पर बातचीत में तीखा टकराव देखा गया और
वार्ता किसी नतीजे पर पहुंचे बिना ही खत्म कर दी गई।
जेलेंस्की का बयान: रूस पर लगे G7 प्रतिबंध
वार्ता के
बाद मीडिया को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा, “यह स्पष्ट है कि रूस शांति नहीं
चाहता। उसकी मंशा सिर्फ आक्रामकता और दबाव की है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब और
देरी नहीं करनी चाहिए। हमें G7 समूह से
अपेक्षा है कि वह रूस पर कठोर प्रतिबंध लगाए ताकि वह युद्ध की अपनी नीति से पीछे
हटे।”
उन्होंने यह
भी कहा कि अगर रूस को आर्थिक, सैन्य और
राजनीतिक रूप से वैश्विक मंचों पर अलग-थलग नहीं किया गया, तो उसका हौसला और बढ़ेगा।
जेलेंस्की ने सुझाव दिया कि G7 देशों को
रूस की ऊर्जा आपूर्ति, बैंकिंग लेनदेन और हथियारों की
सप्लाई पर पूरी तरह से रोक लगानी चाहिए।
रूस की प्रतिक्रिया
रूसी
प्रतिनिधिमंडल ने यूक्रेनी राष्ट्रपति के आरोपों को ‘अवास्तविक’ और ‘राजनीतिक बयानबाजी’ करार दिया। रूस की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान में
कहा गया कि “हम वार्ता के लिए हमेशा तैयार हैं, लेकिन यूक्रेन की सरकार शांति के
बजाय सिर्फ पश्चिमी देशों के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है।”
रूस ने यह
भी आरोप लगाया कि यूक्रेन के शांति प्रस्ताव दरअसल एकपक्षीय हैं और वे रूस की
सुरक्षा चिंताओं और उसकी भू-राजनीतिक मांगों की अनदेखी करते हैं। इस बयान से यह
साफ हो गया कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच किसी बड़ी वार्ता की संभावना
कम ही है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
शांति
वार्ता के विफल होने पर दुनिया भर से प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों ने
वार्ता के असफल होने पर चिंता जताई है और रूस से आक्रामक रवैया छोड़ने की अपील की
है। अमेरिका के विदेश मंत्री ने कहा कि “शांति के रास्ते को मजबूत करना सभी की जिम्मेदारी है, लेकिन रूस की ओर से मिलने वाला
सहयोग बेहद सीमित है।”
संयुक्त
राष्ट्र महासचिव ने भी दोनों देशों से अपील की है कि वे युद्धविराम पर सहमति बनाएं
और नागरिकों की जान की रक्षा को प्राथमिकता दें। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि आने
वाले हफ्तों में एक और अंतरराष्ट्रीय बैठक आयोजित की जा सकती है, जिसमें अन्य वैश्विक शक्तियों को
भी शामिल किया जाएगा।
G7 की भूमिका और संभावित प्रतिबंध
G7 समूह जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं, पहले से ही रूस पर कई तरह के
प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन अब यूक्रेन की मांग है कि इन प्रतिबंधों को और कठोर
किया जाए। विश्लेषकों का मानना है कि यदि G7 समूह रूस के खिलाफ नई कार्रवाई करता है, तो इसमें निम्नलिखित उपाय शामिल हो
सकते हैं:
- तेल और गैस निर्यात पर पूर्ण
प्रतिबंध
- रूसी बैंकों को SWIFT प्रणाली से बाहर करना
- रूसी नेताओं की संपत्तियों को
फ्रीज करना
- प्रवासन और वीजा नीतियों में
कड़े बदलाव
- रूस को अंतरराष्ट्रीय
संस्थाओं से बाहर करना
हालांकि कुछ
G7 देशों में रूस के खिलाफ और
प्रतिबंधों को लेकर मतभेद भी हैं, खासकर ऊर्जा
आपूर्ति को लेकर। लेकिन जेलेंस्की के इस आह्वान के बाद यह संभावना बढ़ गई है कि इस
मुद्दे पर G7 की अगली बैठक में अहम निर्णय लिए
जाएंगे।
आम नागरिकों पर असर
इस युद्ध का
सबसे बड़ा प्रभाव आम नागरिकों पर पड़ा है। यूक्रेन में लाखों लोग अपने घर छोड़
चुके हैं, स्कूल और अस्पताल तबाह हो चुके हैं, और रोज़मर्रा की जिंदगी पूरी तरह
अस्त-व्यस्त हो गई है। वहीं रूस में भी युद्ध के चलते अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर
पड़ा है और युवाओं को जबरन सेना में भर्ती किया जा रहा है।
मानवाधिकार
संगठनों ने दोनों देशों से आग्रह किया है कि वे तुरंत युद्धविराम करें और आम
नागरिकों की जान और अधिकारों की रक्षा करें। रिपोर्ट्स के मुताबिक यूक्रेन में अब
भी कई शहरों में बिजली, पानी और दवाओं की भारी कमी बनी हुई
है।