2014 से 2025: कैसे बदली मोदी सरकार में शिक्षा की तस्वीर और तकदीर

 

11 सालों में शिक्षा का बदलता चेहरा: युवा अब सिर्फ सपने नहीं देखते, उन्हें जीते हैं

जब कोई मुझसे पूछता है कि भारत की शिक्षा में क्या वाकई बदलाव आया है, तो मैं बस इधर-उधर देखने लगता हूं। एक गांव के सरकारी स्कूल में स्मार्ट क्लास चलती देखता हूं। किसी शहर की गली में एक लड़की को लैपटॉप पर प्रोग्रामिंग करते देखता हूं। और फिर सोचता हूं — हां, कुछ तो बदला है। और ये बदलाव अचानक नहीं आए। इसके पीछे 11 साल की मेहनत और लगातार नीतियों में सुधार की कहानी छुपी है।

नई सोच, नई दिशा – अब किताबें नहीं, समझ बढ़ी है

पहले तो बस यही चलता था – रट लो, याद कर लो, नंबर ले आओ। लेकिन अब पढ़ाई का मतलब बदल रहा है। नई शिक्षा नीति 2020 ने बच्चों को सिर्फ परीक्षा पास करने वाला नहीं, सोचने और समझने वाला इंसान बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। स्कूल अब उन बच्चों को खोजते हैं जो सवाल पूछें, जिज्ञासु बनें और खुद से कुछ नया सीखने की हिम्मत रखें।

और मजेदार बात ये कि अब स्कूलों में भाषाओं को भी सम्मान मिल रहा है। अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करना अब शर्म की बात नहीं, गर्व की बात बन रही है।

मोबाइल में गेम नहीं, अब ज्ञान है

मोदी सरकार के समय में डिजिटल शिक्षा को इतना बढ़ावा मिला कि अब गाँव का बच्चा भी ऑनलाइन कुछ सिख सकता है। DIKSHA, SWAYAM, PM eVidya, ये सब नाम अब आम हो गए हैं। मोबाइल अब सिर्फ गेम खेलने का साधन नहीं रहा, बल्कि हजारों बच्चों की क्लासरूम बन चुका है।

जहाँ पहले अच्छे टीचर्स मिलना मुश्किल था, अब इंटरनेट के ज़रिए देश के सबसे अच्छे शिक्षक किसी भी छात्र की पहुँच में हैं।

डिग्री से ज़्यादा काम का हुनर

आजकल युवाओं को ये बात समझ में आने लगी है कि सिर्फ बी.ए. या बी.कॉम की डिग्री से कुछ नहीं होता। काम का हुनर ही असली ताकत है। मोदी सरकार की Skill India Mission और PMKVY जैसी योजनाओं ने युवाओं को ऐसा हुनर दिया जिससे वे खुद का रोजगार शुरू कर सकें।

अब किसी गांव में बैठा लड़का वेबसाइट डिजाइन कर रहा है, कोई लड़की फैशन डिज़ाइनिंग में खुद का ब्रांड बना रही है। ये बदलाव केवल किताबों से नहीं आया, ये बदला है सोच और सिस्टम से।

पढ़ाई में भी स्टार्टअप का तड़का

आज का युवा जॉब ढूंढने वाला नहीं, जॉब देने वाला बनना चाहता है। और सरकार ने इसमें मदद की है। Atal Innovation Mission, Startup India जैसी योजनाओं ने बच्चों में इनोवेशन और रिसर्च की चिंगारी जलाई है।

स्कूलों में Atal Tinkering Labs खुले हैं जहाँ बच्चे रोबोट बना रहे हैं, ऐप बना रहे हैं और अपनी सोच को असली रूप दे रहे हैं। ये वो भारत है जहाँ पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रही।

गांव की बेटियां भी अब आसमान छू रही हैं

कुछ साल पहले तक गांव की लड़की का स्कूल जाना भी बड़ी बात होती थी। लेकिन बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं ने माहौल बदला है। अब सरकार खुद लड़कियों को स्कूल लाने के लिए साइकिल, स्कॉलरशिप, हॉस्टल जैसी सुविधाएं दे रही है।

कई बार देखा है — एक छोटे से कस्बे की लड़की दिल्ली में पढ़ाई कर रही है, और परिवार उसे गर्व से देख रहा है। यही असली बदलाव है।

हर छात्र को बराबरी का मौका

अभी की शिक्षा व्यवस्था में एक और चीज़ जो अच्छी लगी — वो है लचीलापन। अब छात्रों को ज़्यादा आज़ादी मिली है। जैसे अगर कोई बीच में पढ़ाई छोड़ दे, तो बाद में वहीं से फिर शुरू कर सकता है। Academic Bank of Credits और Multiple Entry-Exit System ने छात्रों को नई राह दी है।

अब पढ़ाई एक बोझ नहीं, बल्कि एक सहारा बनती जा रही है।

नतीजा क्या है?

अगर 11 सालों के बदलाव का असर देखना है, तो बस किसी युवा की आंखों में देखिए। उनमें जो चमक है, वो कहती है – "अब हम सिर्फ सपना नहीं देखते, उन्हें हकीकत में बदलते हैं।"

पहले जहां युवा विदेश जाने का सपना देखते थे, अब वे देश में रहकर कुछ नया करना चाहते हैं। आत्मनिर्भर भारत की नींव कहीं न कहीं इन बदलती किताबों और सोच में ही रखी गई है।

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