Bengaluru Stampede Case: कौन हैं निखिल सोसले? जिन्हें पुलिस ने बेंगलुरु भगदड़ मामले में किया गिरफ्तार

हाल ही में बेंगलुरु में हुई भगदड़ की घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस हृदयविदारक हादसे में कई लोग घायल हुए, और अफरा-तफरी का माहौल बन गया। इस मामले में अब एक नाम सामने आया है — निखिल सोसले। पुलिस ने उन्हें इस भगदड़ के लिए जिम्मेदार मानते हुए गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन आखिर निखिल सोसले हैं कौन? और क्यों उनके खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई की गई? आइए विस्तार से जानते हैं।



भीड़, चीख-पुकार और एक लाचार शाम: बेंगलुरु भगदड़ की आंखों देखी

बेंगलुरु से अनिल शर्मा की रिपोर्ट

“अम्मा गिर गई थी... कोई उठा भी नहीं। सब भाग रहे थे,” — ये कहती है 10 साल की विनीता, जिसकी मां भगदड़ में बुरी तरह घायल हो गई हैं।

बेंगलुरु के बिदरहल्ली इलाके में बुधवार को एक कार्यक्रम के दौरान जो हुआ, उसने कई घरों में सन्नाटा भर दिया है। राशन और कपड़ों की रियायती बिक्री का एलान सुनकर हजारों लोग एक निजी मैदान में इकट्ठा हो गए थे। गर्मी, धूल और अफरातफरी के बीच भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई।

“हमें लगा कुछ बड़ा मिल रहा है...”

रमेश चंद्र, जो पेशे से ऑटो चालक हैं, हाथ में पट्टी बांधे बताते हैं, “बहुत प्रचार हुआ था भाईसाहब। बैनर लगे थे, WhatsApp पर मैसेज आया था कि गरीबों को फ्री सामान मिलेगा। कौन मना करता ऐसे में?”

लोग सुबह 5 बजे से लाइन में लग गए थे। लेकिन जब गेट खुला, कोई व्यवस्था नहीं थी। धक्का-मुक्की शुरू हुई, और फिर चीख-पुकार।

“एक बच्चा मेरी आंखों के सामने गिरा... पैर रख दिया किसी ने उसके ऊपर... मैं कुछ नहीं कर पाया,” — ये कहते हुए रमेश की आंखें भर आती हैं।

निखिल सोसले का नाम क्यों आया?

पुलिस का कहना है कि इस आयोजन के पीछे एक लोकल सामाजिक कार्यकर्ता निखिल सोसले थे। उन्हें इलाके में कई लोग जानते हैं, कहते हैं गरीबों की मदद करते हैं। लेकिन इस बार मामला उल्टा पड़ गया।

पुलिस जांच में पता चला है कि कार्यक्रम की ना तो प्रशासन से विधिवत अनुमति ली गई थी, और ना ही भीड़ नियंत्रण के लिए किसी तरह की व्यवस्था की गई थी।

“उन्हें पता था, इतने लोग आएंगे”

मोहल्ले की एक बुजुर्ग महिला, शारदा अम्मा, कहती हैं — “निखिल बाबू ने खुद प्रचार करवाया था। बोले थे सबको मिलेगा। हम तो खाली थैली लेकर चले आए। पर वहां तो मौत मिली।”

निखिल पर गैर-इरादतन हत्या, सरकारी आदेश की अवहेलना, और बिना अनुमति के कार्यक्रम आयोजित करने के तहत केस दर्ज किया गया है।

पुलिस उपायुक्त (DCP) के मुताबिक, “हम निखिल से पूछताछ कर रहे हैं। यह जानना ज़रूरी है कि आयोजन में और कौन शामिल था। कई लोग घायल हैं, कुछ की हालत गंभीर है।”

कानून क्या कहता है?

इस तरह की लापरवाही पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304A (लापरवाही से मौत), 188 (सरकारी आदेश की अवहेलना), 269/270 (जानबूझकर सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में डालना) और 336 से लेकर 338 तक की धाराएं लागू हो सकती हैं।

अब सवाल उठते हैं

कसूरवार कौन है — प्रचार करने वाला? अनुमति न लेने वाला? या वह सिस्टम जो ऐसे आयोजनों पर नजर नहीं रखता?

राजेश नाम के एक युवक का कहना है, “यह कोई पहला हादसा नहीं है। हर बार गरीब ही मरता है, हर बार बस बयान आते हैं।”

और जिंदगी चलती रहती है

बेंगलुरु की इस घटना ने बता दिया कि भीड़ सिर्फ संख्या नहीं होती — उसमें सपने होते हैं, भूख होती है, उम्मीद होती है। और जब भीड़ में कोई गिरता है, तो सिर्फ एक इंसान नहीं गिरता — इंसानियत भी वहीं कहीं कुचली जाती है।

(यह रिपोर्ट प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय निवासियों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है।)

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