किम जोंग उन का रूस को ‘निःशर्त समर्थन’: यूक्रेन युद्ध में मॉस्को की जीत की उम्मीद और वैश्विक परिप्रेक्ष्य

यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे लंबे और रक्तरंजित संघर्ष ने विश्व राजनीति में कई अनपेक्षित बदलाव और गहरे संकट पैदा कर दिए हैं। इस जटिल स्थिति में अब उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने रूस के प्रति अपना अटूट समर्थन घोषित किया है। उन्होंने न केवल रूस को “निःशर्त समर्थन” देने का वादा किया है, बल्कि उम्मीद जताई है कि मॉस्को इस युद्ध में विजयी होकर उभरेगा। इस बयान ने वैश्विक राजनीति और सैन्य समीकरणों को एक नया आयाम दे दिया है।



उत्तर कोरिया और रूस का बढ़ता हुआ गठबंधन

यूक्रेन युद्ध के शुरू होने से ही रूस को कई देशों से अलग-थलग किया गया, लेकिन उत्तर कोरिया ने इसके विपरीत रूस का एक मजबूत सहयोगी बनकर उभर कर सामने आया है। पिछले तीन सालों से रूस और उत्तर कोरिया के बीच कूटनीतिक और सैन्य संबंध लगातार मजबूत हुए हैं। उत्तर कोरिया ने न केवल रूस को राजनीतिक समर्थन दिया है, बल्कि हजारों सैनिक और हथियार की खेप भी यूक्रेन के संघर्ष क्षेत्र में भेजी है। यह गठबंधन दोनों देशों के लिए सामरिक तौर पर बेहद अहम माना जाता है।

उत्तर कोरिया का यह कदम अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों की नीतियों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया भी है, जिनके कारण दोनों देश कई बार आर्थिक और सैन्य दबावों का सामना कर रहे हैं। किम जोंग उन की यह घोषणा एक प्रकार से अमेरिका को चुनौती देने और रूस के साथ अपनी दोस्ती को पुख्ता करने की रणनीति का हिस्सा है।



उत्तर कोरिया और रूस: बढ़ती दोस्ती, बढ़ती चिंता

नई दिल्ली से प्रवीण कुमार की रिपोर्ट

जब से यूक्रेन में युद्ध शुरू हुआ है, रूस की दुनिया में हालत कुछ खास नहीं रही। कई देश उसे अकेला छोड़ते दिखे। मगर इस बीच, उत्तर कोरिया ने रूस के साथ अपनी दोस्ती को कुछ और मजबूत कर दिया है। तीन सालों से दोनों देशों के रिश्ते ऐसे गहरे हो रहे हैं जैसे पुरानी दोस्ती का कसूरवार कोई वक्त हो।

पड़ोसी से बात हो या कोई आम आदमी, लोग कहते हैं — “ये जो दोनों देश हैं, इन्होंने साथ मिलकर ऐसी तख्ती बजाई है कि सामने वाला डर के मारे थर-थर कांप रहा है।”

“हम देख रहे हैं कि रूस को कैसे उत्तर कोरिया का पूरा साथ मिला है,” कहते हैं सियोल में रहने वाले जॉन चोई, जो पिछले दस सालों से दक्षिण कोरिया में पत्रकार हैं। “यह सिर्फ कूटनीतिक जुड़ाव नहीं है, बल्कि हथियारों और सैनिकों की मदद तक पहुंची है। एक तरह से ये दोनों देशों ने अमेरिका और उसके साथियों को चुनौती दे डाली है।”

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने हाल ही में बड़ा बयान दिया — उन्होंने कहा है कि रूस के लिए उनका समर्थन निःशर्त होगा। मतलब साफ है, चाहे जो भी हो, वह रूस के साथ खड़ा रहेगा।

“किम की इस बात में भारी आत्मविश्वास दिखता है,” बताते हैं मोहन लाल, जो दिल्ली के एक विदेशी नीति विश्लेषक हैं। “इससे रूस को बड़ा मनोबल मिलेगा। लेकिन यह भी सच है कि यह क्षेत्रीय और वैश्विक तनाव को और बढ़ा सकता है।”

लेकिन यह बात सिर्फ भारत या पश्चिमी देशों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए गंभीर है। जब एक तरफ अमेरिका और यूरोप रूस पर दबाव बनाते हैं, तो दूसरी तरफ उत्तर कोरिया जैसे सहयोगी का साथ मिलने से रूस की मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ रही हैं।

“ये गठबंधन तो ऐसे है जैसे दो पुराने शिकारी मिलकर नई चालें चल रहे हों,” कहती हैं माया गुप्ता, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अक्सर रूस-यूक्रेन संघर्ष पर लिखती हैं। “दुनिया में शांति की आस रखे लोगों के लिए ये चिंता की बात है।”

रूस को इस दोस्ती से तेल, हथियार और दूसरे संसाधन मिलेंगे। वहीं, उत्तर कोरिया को रूस से सैनिक सहायता और राजनीतिक ताकत। पर सवाल ये है कि क्या इस गठबंधन से युद्ध और लंबा खिंच सकता है?

कई लोग मानते हैं कि अब यह लड़ाई सिर्फ एक देश का संघर्ष नहीं रहा, बल्कि दो-दो महाशक्तियों के बीच की जंग बन गई है।

“मैं तो बस यही कहूंगा, ये लड़ाई खत्म हो, सबको चैन मिले,” कहते हैं एक यूक्रेनी शरणार्थी, याना, जो हाल ही में भारत आई हैं। उनकी आवाज़ में थकान है, आँखों में दर्द। “हम रोज़ डर के साथ जी रहे हैं। यह संघर्ष खत्म होना चाहिए।”

वैसे तो दुनिया भर के बड़े देश इस नए संतुलन को लेकर सावधान हैं। भारत, चीन, यूरोप, अमेरिका — सबकी नज़रें इस गठबंधन पर हैं।

लेकिन असल में जो लोग सबसे ज्यादा इस लड़ाई से प्रभावित हैं, वे तो आम आदमी हैं — खेतों में काम करने वाले किसान, छोटे दुकानदार, बच्चे, बूढ़े।

“इन ताकतवरों की जंग में हम फंस गए हैं,” कहते हैं विजय, जो अपने छोटे से गाँव में रोज़मर्रा की जिंदगी जी रहे हैं। “हम चाहते हैं कि कोई हमें भी सुने, हमारी आवाज़ भी बने। कहीं तो शांति हो।”

उत्तर कोरिया और रूस का यह नया रिश्ता दुनिया को एक बड़ी चुनौती दे रहा है — क्या यह गठबंधन नए संकट और जंगों को जन्म देगा, या कहीं कोई उम्मीद की किरण भी बची है? वक्त बताएगा।

(यह रिपोर्ट कई विशेषज्ञों, शरणार्थियों और आम लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है।)

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