अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापारिक तनाव एक बार फिर नई ऊँचाई पर पहुंच गया है। चीन ने अमेरिका पर टैरिफ नीति को लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों का 'गंभीर उल्लंघन' करने का आरोप लगाया है।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने सोमवार को एक बयान जारी करते हुए कहा कि अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों और आपसी द्विपक्षीय संधियों का उल्लंघन करते हुए कुछ प्रमुख चीनी उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क (Higher Tariff) लगाया है।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले कुछ तकनीकी उत्पादों, जैसे कि:
-
इलेक्ट्रिक व्हीकल बैटरियाँ,
-
सोलर पैनल कम्पोनेंट्स,
-
और सेमीकंडक्टर चिप्स
पर 25% तक की नई टैरिफ दरें लागू की हैं। अमेरिका का दावा है कि यह कदम 'डंपिंग' रोकने और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए जरूरी था।
लेकिन चीन का कहना है कि यह निर्णय पूरी तरह 'राजनीति से प्रेरित' है और इसका उद्देश्य चीनी तकनीकी विकास को बाधित करना है।
चीन की चेतावनी
चीन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर अमेरिका ने यह निर्णय वापस नहीं लिया, तो वह WTO में औपचारिक शिकायत दर्ज करेगा और "कड़ी जवाबी कार्रवाई" की तैयारी करेगा।
बीजिंग ने यह भी इशारा दिया है कि अमेरिका के कुछ उत्पादों पर प्रत्युत्तर में टैरिफ लगाया जा सकता है।
वैश्विक बाजारों में असर
-
इस विवाद का असर अंतरराष्ट्रीय स्टॉक मार्केट पर दिखना शुरू हो गया है।
-
टेक्नोलॉजी शेयरों में गिरावट,
-
कच्चे तेल और लॉजिस्टिक इंडेक्स में उतार-चढ़ाव,
-
और निवेशकों की चिंताओं में इज़ाफ़ा देखने को मिला है।
विशेषज्ञों की राय
अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह टकराव सिर्फ एक टैरिफ वॉर नहीं, बल्कि "टेक्नोलॉजिकल प्रभुत्व की होड़" का हिस्सा है।
जहाँ अमेरिका चाहता है कि चीन की तकनीकी पकड़ सीमित रहे, वहीं चीन इसे अपने "राष्ट्रीय विकास अधिकार" पर हमला मानता है।
टैरिफ़ विवाद अब एक बार फिर राजनयिक संकट की शक्ल लेता जा रहा है। अगर दोनों देश पीछे नहीं हटे, तो इसका असर न केवल उनके आर्थिक संबंधों पर पड़ेगा, बल्कि पूरी दुनिया की सप्लाई चेन, निवेश और कीमतों पर भी भारी प्रभाव डालेगा।