बांग्लादेश के नए नोटों पर नहीं दिखे ‘बंगबंधु’, जगह ली मंदिरों और बौद्ध स्थलों ने

 बांग्लादेश ने जारी की नई करेंसी: बांग्ला नोटों से हटे ‘बंगबंधु’ मुजीबुर रहमान, जगह ली मंदिरों की तस्वीरों ने – देश में बढ़ी सियासी हलचल

लेखक: विक्की कुमार 

प्रकाशन तिथि: 2 जून 2025

ढाका। बांग्लादेश में हाल ही में एक बड़ा बदलाव देखा गया, जब देश के सेंट्रल बैंक – 'बांग्लादेश बैंक' – ने नई मुद्रा श्रृंखला जारी की, जिसमें अब तक हर नोट पर मौजूद राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर को हटा दिया गया है। उनकी जगह नए नोटों पर अब हिंदू और बौद्ध धर्मस्थलों की तस्वीरें लगाई गई हैं, जिनमें ढाकेश्वरी मंदिर, पुथिया मंदिर और बंदरबन का बौद्ध विहार जैसे धार्मिक स्थल प्रमुख हैं। यह फैसला जहां कुछ समुदायों द्वारा विविधता और समावेशिता के प्रतीक के रूप में सराहा गया है, वहीं देश की राजनीति में इसने एक तीखा विवाद भी खड़ा कर दिया है।




मुजीब से मंदिरों तक – क्या बदला?

बांग्लादेश बैंक द्वारा जारी किए गए 10, 20, 50 और 100 टका के नए नोटों में अब तक चली आ रही परंपरा को पहली बार तोड़ा गया है। आमतौर पर हर नोट पर शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर छपी होती थी, जिनकी पहचान 'बंगबंधु' यानी 'बंगाल के मित्र' के रूप में होती है। लेकिन अब नई श्रृंखला में उन परंपरागत छवियों की जगह देश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मंदिरों और बौद्ध स्मारकों की रंगीन तस्वीरें छपी हैं। इसके अलावा, पीछे की ओर कुछ नोटों पर ग्रामीण जीवन, पारंपरिक नावें और लोक कलाएं भी दर्शाई गई हैं।

बांग्लादेश बैंक के अधिकारियों का कहना है कि यह निर्णय देश की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करने और सभी धर्मों को समान प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से लिया गया है। बैंक के गवर्नर डॉ. हुमायूं कबीर ने प्रेस वार्ता में कहा, “बांग्लादेश केवल एक व्यक्ति या धर्म से परिभाषित नहीं होता। हमारा देश बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम और आदिवासी परंपराओं का संगम है। नई करेंसी इसी विविधता को सलाम करती है।”



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राजनीतिक तूफान: अवामी लीग नाराज़, विपक्ष मौन

हालांकि यह कदम प्रशासनिक दृष्टि से भले ही तर्कसंगत प्रतीत हो, परंतु सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी ने इसे सीधे-सीधे राष्ट्रपिता का अपमान बताया है। अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादर ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मुजीबुर रहमान केवल एक नेता नहीं, बल्कि बांग्लादेश की आत्मा हैं। नोटों से उनकी तस्वीर हटाना उनकी विरासत को मिटाने की साजिश है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह कदम विपक्षी ताकतों और कट्टरपंथी विचारधाराओं की मिलीभगत से उठाया गया है।

दूसरी ओर, प्रमुख विपक्षी दल 'बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी' (BNP) ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। उनके प्रवक्ताओं ने मीडिया के सवालों से किनारा कर लिया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वे इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेने की तैयारी में हैं।

अल्पसंख्यक समुदायों में खुशी

बांग्लादेश की करीब 9% आबादी हिंदू है और लगभग 0.7% बौद्ध समुदाय से आती है। इन समुदायों के बीच इस फैसले को स्वागत योग्य माना जा रहा है। ढाका विश्वविद्यालय में हिंदू अध्ययन के प्रोफेसर श्रीहरि चक्रवर्ती कहते हैं, “यह पहली बार है जब हमारी सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। ढाकेश्वरी मंदिर या बुद्ध विहार केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऐतिहासिक धरोहर हैं जो सदियों से इस भूभाग की पहचान रहे हैं।”

इसी प्रकार, बौद्ध समुदाय के एक प्रमुख भिक्षु भंते शांतारक्षिता ने इसे “सांस्कृतिक समरसता की ओर उठाया गया सकारात्मक कदम” बताया है।



क्या बदलेगा देश की पहचान?

बांग्लादेश की पहचान अब तक एक मुस्लिम-बहुल राष्ट्र के रूप में होती रही है, लेकिन इसकी जड़ें एक समय हिंदू-बौद्ध परंपराओं से गहराई से जुड़ी रही हैं। प्राचीन पाल वंश और सेन वंश के शासनकाल में यह क्षेत्र बुद्ध और शिव की उपासना का प्रमुख केंद्र था। लेकिन 1971 के बाद, जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त की, तो उसकी राष्ट्रीय पहचान मुस्लिम जनसंख्या के इर्द-गिर्द केंद्रित होने लगी।

इस नई करेंसी के ज़रिए क्या सरकार देश की पहचान को अधिक समावेशी बनाना चाहती है? या यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक प्रयास है? विशेषज्ञों की राय इस पर बंटी हुई है।

ढाका स्थित राजनीतिक विश्लेषक फारूख अहमद कहते हैं, “यह कदम निश्चित रूप से साहसिक है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या इसका कोई ठोस असर अल्पसंख्यक सुरक्षा और समानता पर भी पड़ता है, या यह केवल काग़ज़ी बदलाव बनकर रह जाएगा।”

धार्मिक ध्रुवीकरण की आशंका

हालांकि सरकार ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि यह बदलाव सांस्कृतिक विविधता को दर्शाने के लिए है और इससे किसी भी धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई गई है, लेकिन सोशल मीडिया और स्थानीय मस्जिदों में इस फैसले की आलोचना शुरू हो चुकी है।

कुछ धार्मिक संगठनों ने इसे ‘धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस्लामी पहचान को कमजोर करने’ की कोशिश बताया है। फेसबुक पर #CurrencyJihad और #SaveMujib जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। हालांकि अभी तक किसी बड़े विरोध प्रदर्शन की खबर नहीं है, लेकिन आने वाले शुक्रवार की नमाज के बाद देश भर में प्रदर्शन की आशंका जताई जा रही है।

सरकार का अगला कदम क्या?

बांग्लादेश सरकार ने अभी तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री शेख हसीना अगले सप्ताह एक राष्ट्र के नाम संबोधन में इस मुद्दे पर बात कर सकती हैं। माना जा रहा है कि वे राष्ट्रपिता की विरासत को सम्मान देने के साथ-साथ सांस्कृतिक विविधता को भी आगे बढ़ाने की बात करेंगी।

वहीं बांग्लादेश बैंक ने स्पष्ट किया है कि पुराने नोट प्रचलन में बने रहेंगे और उन्हें वापस नहीं लिया जाएगा। नए नोटों का यह बदलाव चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।


बांग्लादेश की नई मुद्रा श्रृंखला केवल वित्तीय बदलाव नहीं है — यह देश की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक पहचान के पुनर्परिभाषण का संकेत है। नोटों पर शेख मुजीब की तस्वीर हटाकर मंदिरों और बौद्ध स्थलों की छवियां देना केवल प्रतीक नहीं, एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संदेश है।

यह कदम आने वाले वर्षों में बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता की दिशा में नई राह खोल सकता है, या फिर यह राजनीतिक अस्थिरता की एक नई कहानी की शुरुआत बन सकता है। इस बदलाव की सच्ची परीक्षा तब होगी जब विविधता केवल नोटों की तस्वीरों में नहीं, बल्कि नीतियों, अवसरों और व्यवहार में भी दिखाई दे।

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