रूस पर ड्रोन अटैक के बाद बड़ा सवाल: क्या भारत तैयार है अगली तकनीकी जंग के लिए?

लेखक: विक्की सरदार

प्रकाशन तिथि: 2 जून 2025


हाल ही में यूक्रेन द्वारा रूस के भीतर किए गए ड्रोन हमलों ने न केवल युद्ध की दिशा को एक नई करवट दी है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा विश्लेषकों के बीच चिंता भी बढ़ा दी है। ये हमले केवल रूस-यूक्रेन संघर्ष तक सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि अब सवाल यह उठ रहा है कि यदि ऐसे अत्याधुनिक ड्रोन हमले भारत जैसे विशाल और विविध भूगोल वाले देश पर किए जाएं तो क्या भारत इसके लिए तैयार है?



रूस में अंदर तक घुसे ड्रोन

यूक्रेन ने बीते सप्ताह रूस के कई अहम शहरों और औद्योगिक ठिकानों पर ड्रोन हमले किए। मॉस्को से लेकर कज़ान तक की दूरी तय करते हुए ये ड्रोन रूसी सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देते हुए लक्ष्य तक पहुंचे। तेल रिफाइनरी, हथियार डिपो और एयरबेस जैसे अहम ठिकाने निशाने पर थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि यूक्रेन की ड्रोन रणनीति अब रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक हो चुकी है।


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इन हमलों की दो खास बातें थीं: पहला, इन ड्रोन की रेंज 800 से 1000 किलोमीटर तक थी। दूसरा, इनमें से कई ड्रोन रूस की अत्याधुनिक S-400 डिफेंस सिस्टम को चकमा देकर निशाने तक पहुंचे। यह तकनीकी उपलब्धि केवल यूक्रेन की नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर ड्रोन तकनीक के खतरनाक विकास का संकेत है।


भारत की स्थिति: सतर्क लेकिन कितना सक्षम?

अब सवाल यह उठता है कि यदि इस प्रकार के सटीक और लंबे रेंज वाले ड्रोन हमले भारत के खिलाफ किए जाते हैं — चाहे वह पाकिस्तान, चीन या कोई गैर-राज्य संगठन करे — तो क्या भारत उसके लिए तैयार है?

भारत के पास फिलहाल रूस से आयातित S-400 एयर डिफेंस सिस्टम मौजूद है, जिसे राजधानी दिल्ली समेत सीमावर्ती इलाकों में तैनात किया गया है। इसके अलावा स्वदेशी 'आकाश' मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी सीमित दायरे में रक्षा प्रदान करता है। परंतु, ड्रोन हमले की प्रकृति इतनी लचीली और चुपचाप होती है कि पारंपरिक एयर डिफेंस सिस्टम हर बार इन्हें नहीं पकड़ पाता।



स्वदेशी ड्रोन तकनीक और प्रतिक्रिया क्षमता

भारत ने बीते वर्षों में ड्रोन तकनीक के क्षेत्र में तेज़ी से निवेश किया है। DRDO द्वारा विकसित किए गए ड्रोन 'रुस्तम' और 'तपस' निगरानी और सीमित हमलों में सक्षम हैं, परंतु अभी भी वे वाणिज्यिक और सामरिक दोनों लिहाज से पूर्णतः आत्मनिर्भर नहीं हैं। भारत ने कुछ सशस्त्र ड्रोन अमेरिका और इज़राइल से भी प्राप्त किए हैं, लेकिन चीन जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में हमारी संख्या और किस्म में कमी है।


वहीं, भारत की ड्रोन-विरोधी तकनीक अभी विकास के दौर में है। कुछ एयरपोर्ट्स और रक्षा प्रतिष्ठानों पर एंटी-ड्रोन सिस्टम लगाए गए हैं, लेकिन समूचे देश में ऐसी व्यवस्था मौजूद नहीं है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में कई बार पाकिस्तान की ओर से आए ड्रोन को मार गिराया गया है, लेकिन सीमित संसाधनों के कारण हर बार सफलता नहीं मिली।


साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की भूमिका

आधुनिक ड्रोन केवल उड़ते हथियार नहीं हैं, बल्कि वे GPS, AI और सैटेलाइट कम्युनिकेशन से जुड़कर काम करते हैं। ऐसे में साइबर सुरक्षा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत ने हाल ही में 'डिजिटल स्ट्राइक यूनिट्स' गठित की हैं जो GPS जामिंग, रेडियो फ्रीक्वेंसी इंटरसेप्शन और साइबर हस्तक्षेप के जरिए ड्रोन को निष्क्रिय कर सकती हैं।


हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षमता अभी शुरुआती चरण में है। चीन और अमेरिका के मुकाबले भारत को इस दिशा में कई गुना अधिक निवेश की आवश्यकता है।


आम नागरिकों के लिए खतरा

ड्रोन हमलों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि ये सिविल इलाकों में भी बड़ी तबाही ला सकते हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध में ऐसे कई उदाहरण सामने आए जहां आवासीय इलाकों में ड्रोन से हमला कर लोगों को डराने की कोशिश की गई। भारत में बड़े शहरों — जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु — में ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए क्या प्लान है? फिलहाल इसका कोई स्पष्ट रोडमैप सामने नहीं आया है।


हाल ही में गणतंत्र दिवस परेड और G20 समिट जैसे आयोजनों में एंटी-ड्रोन यूनिट्स तैनात की गई थीं, लेकिन ये प्रयास अभी केवल कार्यक्रम-आधारित हैं, सतत नहीं।


नीति निर्माण की आवश्यकता

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब एक केंद्रीयकृत ‘एंटी-ड्रोन नीति’ की आवश्यकता है, जिसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार के खतरों को ध्यान में रखते हुए तकनीक, मानव संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर की योजना बनाई जाए।


सुरक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) एस. एन. सिन्हा कहते हैं, “ड्रोन आज के दौर के आतंकवाद का नया चेहरा हैं। ये सस्ते, प्रभावी और लक्ष्य-निर्दिष्ट हथियार हैं। भारत को सामूहिक दृष्टिकोण से इस खतरे का जवाब देना होगा, जिसमें सेना, पुलिस, साइबर एजेंसियां और निजी कंपनियों का समन्वय हो।”


आगे की राह

स्वदेशी एंटी-ड्रोन सिस्टम का विकास: DRDO को ऐसी प्रणाली विकसित करने के लिए अधिक संसाधन और अधिकार दिए जाने चाहिए जो कम कीमत में देशभर में तैनात की जा सके।

सीमा पर निगरानी तंत्र: BSF और सेना को अत्याधुनिक ड्रोन डिटेक्शन सिस्टम से लैस करना होगा, जिससे पाकिस्तान और चीन से आने वाले छोटे ड्रोन को भी समय रहते पकड़ा जा सके।

नागरिक अवेयरनेस: ड्रोन संबंधित आपात स्थितियों के लिए नागरिकों को भी प्रशिक्षित करना आवश्यक है — जैसे फायर अलार्म या भूकंप के समय की तैयारी होती है, उसी तरह ड्रोन हमले से निपटने की प्रक्रिया भी सामान्य जानकारी बननी चाहिए।

रक्षा अनुबंधों में गति: भारत ने अमेरिका से 31 MQ-9 Reaper ड्रोन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन यह प्रक्रिया अभी तक लंबित है। ऐसे सामरिक निर्णयों में तेजी लानी होगी।

यूक्रेन द्वारा रूस पर किए गए ड्रोन हमले आधुनिक युद्ध की परिभाषा को बदलने वाले साबित हो रहे हैं। भारत जैसे देश, जो लगातार दो मोर्चों पर खतरे का सामना करता है, को केवल पारंपरिक हथियारों और सैन्य अभ्यासों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। ड्रोन युद्ध अब वास्तविकता है और भारत को इसके लिए न केवल तकनीकी रूप से तैयार होना होगा, बल्कि एक व्यापक नीति और राष्ट्रीय रणनीति के साथ इसके खिलाफ अपनी ढाल को मजबूत करना होगा।


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