जहां पूरी दुनिया ईद के त्योहार पर खुशियां मना रही थी, वहीं बलूचिस्तान के हजारों परिवारों के लिए यह दिन एक बार फिर आंसुओं और इंतजार का प्रतीक बनकर आया। उन परिवारों के लिए ईद अब न तो मीठी सेवइयों की मिठास लेकर आती है, न ही गले मिलने की खुशी। उनके घरों में सन्नाटा है, और आंखों में वर्षों पुराना इंतजार।
लापता अपने: आंकड़े नहीं, जिंदा यादें हैं
बलूचिस्तान में मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, बीते एक दशक में 20,000 से अधिक बलूच नागरिकों के जबरन गायब किए जाने के मामले सामने आए हैं। यह आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है, लेकिन न्याय और जवाबदेही की रफ्तार लगभग ठहर चुकी है।
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इन लोगों को न कोई कानूनी वारंट दिखाया गया।
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न कोई गिरफ्तारी की पुष्टि की गई।
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और फिर, कोई खबर नहीं—सालों-साल से।
माँओं की आँखें, बहनों की उम्मीदें
कई माताओं ने अपने बच्चों की तस्वीरें लेकर ईद के दिन भी प्रदर्शन किया। एक माँ रोते हुए कहती हैं:
"यह मेरी दसवीं ईद है बिना बेटे के। हर बार सोचती हूं शायद आज वो आ जाएगा, लेकिन हर बार खाली दरवाज़ा ताकती रह जाती हूं।"
क्वेटा में खामोश प्रदर्शन, लेकिन गूंजती आवाज़ें
ईद के दिन क्वेटा, खारान, मस्तुंग और पंजगुर जैसे इलाकों में सैकड़ों की संख्या में बलूच परिवार प्रदर्शन करते देखे गए। इनमें महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल थे। उनके हाथों में अपनों की तस्वीरें थीं, और एक पोस्टर पर लिखा था:
"हमें हमारे बच्चे लौटा दो, कब तक हमारी ईदें सूनी रहेंगी?"
क्या कहती है सरकार?
पाकिस्तानी सरकार हमेशा इन आरोपों से इनकार करती आई है। ISPR (Inter-Services Public Relations) के अनुसार, बलूचिस्तान में आतंकवाद विरोधी अभियान जारी हैं और सभी गिरफ्तारियाँ नियमों के तहत होती हैं। लेकिन मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट्स इससे अलग तस्वीर पेश करती हैं।
मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट
पिछले साल, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बलूचिस्तान पर विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें कहा गया था:
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जबरन गुमशुदगी पाकिस्तान की "अनकही नीतियों" का हिस्सा बन चुकी है।
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अधिकतर केसों में सेना या अर्धसैनिक बलों पर आरोप लगे हैं।
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कई मामलों में अपहृत व्यक्तियों की लाशें कुछ दिनों बाद सुनसान इलाकों में फेंक दी गईं।
अंतरराष्ट्रीय चुप्पी क्यों?
बलूच लोगों का सबसे बड़ा सवाल यही है — "दुनिया चुप क्यों है?"
बलूच नेता और कार्यकर्ता सवाल करते हैं कि जब दुनिया फिलिस्तीन, यूक्रेन या रोहिंग्या पर आवाज़ उठाती है, तो बलूचिस्तान की तकलीफों पर इतनी चुप्पी क्यों?
सोशल मीडिया की मुहिम
हाल के वर्षों में बलूच युवा पीढ़ी ने ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म्स पर #SaveBalochPeople और #BalochMissingPersons जैसे हैशटैग से एक आंदोलन खड़ा किया है। इन ऑनलाइन अभियानों ने कुछ अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों और संगठनों का ध्यान ज़रूर खींचा है, लेकिन धरातल पर बदलाव अभी दूर है।
ईद एक बार फिर बीत गई, लेकिन बलूचिस्तान की गलियों में अभी भी मातम पसरा है।
जहां बाकी पाकिस्तान नए कपड़ों और खुशबूओं में लिपटा था, वहीं बलूचिस्तान में हर परिवार के दिल में एक ही सवाल था—
"क्या मेरा बेटा इस बार लौटेगा?